बस्तर एवं नारायणपुर जिले Bastar and Narayanpur Tourism 👉👉👉👉👉👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
Bastar and Narayanpur Tourism बस्तर एवं नारायणपुर जिले में विभिन्न आदिवासी जातियों का निवास है इस जिले में बसने वाली प्रमुख जातियां गोड बत्रा और नव कोरबा कोल हलवा एवं बढ़िया इस जिले में कई पारंपरिक मेले तथा त्योहारों का आयोजन होते रहते हैं इसके अलावा यहां लोक संगीत लोक नृत्य लोक नाटकों का आयोजन भी किया जाता है इन समारोह में कई दुर्लभ प्राचीन एवं ग्रामीण वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है जो पर्यटकों का मन मोह लेते हैं
Table of Contents
जगदलपुर 👇
रायपुर से 299 किलोमीटर दूर यह बस्तर का जिला मुख्यालय है इंद्रावती नदी के मुहाने पर बसा जगदलपुर एक प्रमुख संस्कृति एवं हस्तशिल्प केंद्र है
जिला प्राचीन संग्रहालय 👇
पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा स्थापित एवं संग्रहालय में प्राचीन धरोहरों को प्रदर्शित किया गया
डांसिंग कैक्टस 👇
यह कला केंद्र बस्तर के विख्यात कला संस्कार की अनुपम भेंट है यहीं पर एक प्रशिक्षण संस्थान भी स्थापित है
कोंडागाव 👇
शिल्पग्राम के नाम से प्रसिद्ध यह जगह जगदलपुर के उत्तर में 76 किलोमीटर दूरी पर स्थित है इसकी स्थापना अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिल्पी जयदेव भागेल के प्रयासों से ही संभव हुई
केशकाल 👇
जगदलपुर से 130 किलोमीटर दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या तिरालिस पर स्थित इस कस्बे में अद्भुत प्राकृतिक छटा छटा के साथ तेलीन माता का मंदिर और एक प्रसाद के दर्शन भी किए जा सकता है
पंचवटी 👇
केशकाल केशकाल से मात्र 2 किलोमीटर दूरी पर न्यू पर्यटन स्थल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या तिरालिस पर ताल्लुक मुख्यालय वन विभाग द्वारा विकसित इसे छत्तीसगढ़ की पंचवटी के नाम से भी जाना जाता है
कोटमासर👇
जगदलपुर से 40 किलोमीटर दूरी पर कोटा महासर को हैरतअंगेज प्राकृतिक भूमिगत गुफा के लिए जाना जाता है जो विश्व में अपनी तरह की एकमात्र गुफाएं जहां यह गुफा लगभग साडे 4000 फुट लंबी है और भूमिगत से लगभग 60 दशमलव 215 फुट गहराई पर स्थित है तूने और पानी से बनी इस सुंदर गुफा से कहीं गई शिवलिंग का आभास भी होता है इस गुफा का प्रवेश द्वार केवल 5 फुट ऊंचा और 3 फुट चौड़ा है तथा इसमें 5 कक्ष बने हुए हैं7
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान👇
जगदलपुर से 200 किलोमीटर और रायपुर से 490 किलोमीटर दूरी जंगलों के बीच बनाया गया इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान 1258 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है ना पाए जाने वाले प्रमुख जानवर शेर चीता तेंदुआ जंगली भैंसा हिरण आदि
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान👇
भैरमगढ़ अभ्यारण 👇
इंद्रावती नदी के किनारे पर स्थित इस अभ्यारण की स्थापना 1983 में की गई थी 139 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस अभ्यारण में चीता बाघ तेंदुआ सांभर जंगली भैंसा एवं 12 सिंह आदि प्रमुख
चित्रकूट👇
चित्रकूट की प्राकृतिक छटा दर्शनीय इंद्रावती नदी पर 19 फुट की ऊंचाई से गिरते झरने को देखना रोमांचक अनुभव है यहां मछली पकड़ने नाव चलाना और तैराकी की सुविधा उपलब्ध है जगदलपुर से मात्र 40 किलोमीटर दूर यह रमणीय स्थल प्राकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठाने वाले पर्यटकों को स्वता ही आकर्षित करता है
हाथी दरहा 👇
मतनेर जलप्रपात की वजह से पहचाना जाने वाला हाथी धरा चित्रकूट से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह लगभग 100 फुट की ऊंचाई से गिरता है अंग्रेजी के शब्द के आकार वाली घाटी जो 150 से 200 फुट गहरी है इस क्षेत्र की सबसे गहरी घाटी है
तीरथगढ़ 👇
कांगेर नदी पर बनाती राजगढ़ पर्यटकों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है यह जगदलपुर से 38 किलोमीटर दूर कांगेर राष्ट्रीय उद्यान पर बना हुआ है
कांगेर धारा और कुंआरा सौंदर्य 👇
तीरथगढ़ पर आकर्षक धरने का निर्माण करने के बाद कांगेर नदी और अधिक आकर्षक रूप से 810 ही समय बढ़ जाती है और कांगेर धारा इसमें से एक है यह हजारों वर्ष पुरानी चट्टानों है और हाथी नुमा पत्थर है इसी कारण इसे कुंवारा सौंदर्य के नाम से पुकारा जाता है
मेले एवं त्यौहार👇
इस जिले के लोग सदा सदा ही किसी मेला उत्सव को मनाने का अवसर गांव आते हैं यहां कई सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं 9 खानी गंगा दशहरा सरहुल चरका दशहरा दीपावली कर्मा कार्तिका एवं हरेली आदि त्योहार पारंपरिक तरीके से बनाए जाते हैं हालांकि बस्तर के निवासी तथा त्यौहार पूरी तरह सौंदर्य पूर्ण होते हैं लेकिन वह तब तक अपूर्ण रहते हैं जब तक उन में मांस मांस मछली महुआ और मैथुन आदि 5 तत्वों का समावेश ना हो यह समारोह पर्यटकों के लिए कभी ना भूलने वाली सौगात की तरह होते हैं
दशहरा 👇
बस्तर का दशहरा समारोह विश्व प्रसिद्ध द शहरा यूट्यूब पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन बस्तर की आदिवासी जातियों के इसे मनाने का अपना अलग ही अंदाज है |
यहां के आदिवासी अपना कुलदेवी और मां दंतेश्वरी की परिक्रमा कर दशहरा मनाते अक्टूबर-नवंबर में मजा मनाए जाने वाले इस पर्व की शुरुआत हरियाली अमावस्या को स्थानीय देवी कठिन बूढ़ी मां दंतेश्वरी भगवान हनुमान एवं भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से होती है|
इस दौरान यहां दो रथ यात्राएं फुल राठौर विजय रथ की आयोजन की जाती है दशहरे के दिन मारिया और ध्रुवा नाम की दो आदिवासी जातियों के लोगों द्वारा रत को चुरा कर कुम्हड़ा कोर्ट नामक स्थान पर छोड़ दिया जाता है तत्पश्चात देवी की पूजा की जाती है और फिर रात को वापस देवी मां दंतेश्वरी के मंदिर पर लाया जाता है पूरी रात चलने वाले इस समारोह में हजारों आदिवासी रथ को खींचते हुए मां दंतेश्वरी के मंदिर पर लाते हैं |
नवरात्रि का अंतिम दिन 9 खानी के नाम से जाना जाता है इस विशेष दिन की नई फसल की पैदावार को उपयोग शुरू किया जाता है
गोंचा पर्व👇
दशहरा समारोह के दौरान ही एक अन्य रथ यात्रा आयोजित की जाती है जो गोंचा पर्व के नाम से प्रसिद्ध है इस वक्त पर्व इस दौरान एक लंबे खाली बात से पेंग नाम के फल से बनी गोलियों को दगा जाता है