छत्तीसगढ़ी साहित्य : Chhattisgarhi Literature

छत्तीसगढ़ी साहित्य || पद्य साहित्य || गद्य साहित्य || साहित्य || गाथा युग || भक्ति युग || आधुनिक युग || Chhattisgarhi Literature

Chhattisgarhi Literature कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन (संवत 1520) धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है, जिनके पदों का संकलन व प्रकाशन हरि ठाकुर जी ने किया है। बाबू रेवाराम के भजनों ने छत्तीसगढ़ी की इस शुरुआत को बल दिया।

छत्तीसगढ़ी साहित्य : Chhattisgarhi Literature

पद्य साहित्य

छत्तीसगढ़ी के उत्कर्ष को नया आयाम दिया पं. सुन्दरलाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडेय, मुकुटधर पांडेय, नरसिंह दास वैष्णव, बंशीधर पांडेय, शुकलाल पांडेय ने कुंजबिहारी चौबे, गिरिवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी कवितीओं की अग्नि को साबित कर दिखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कपिलनाथ मिश्र का उल्लेख भी आवश्यक होगा।

70 के दशक में पं द्वारिका प्रसाद तिवारी, बाबू प्यारेलाल गुप्त, कोदूराम दलित, हरि ठाकुर, श्यामलाल चतुर्वेदी, कपिलनाथ कश्यप, बद्रीविशाल परमानंद, नरेन्द्र देव वर्मा, हेमनाथ यदु, भगवती सेन, नारायणलाल परमार, डॉ० विमल कुमार पाठक, लाला जगदलपुरी, केयूर भूषण, बृजलाल शुक्ल आदि ने छत्तीसगढ़ी साहित्य की विषय विविधता को सिद्ध कर दिखाया।

छत्तसीगढ़ी भाषा और रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में दानेश्वर शर्मा, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिहा, रामेश्वर वैष्णव और विमल पाठक ने न केवल कवि सम्मेलनों के मंचों में अपना लोहा मनवाया अपितु उन्होंने सार्थक एवं अकादमिक लेखन भी किया है, जो इस प्रदेश के जन-जन के मन में रमे हैं। इधर डॉ० सुरेन्द्र दुबे ने देश-विदेश के मंचों में कविता पढ़कर छत्तीसगढ़ी का मान बढ़ाया है।

छत्तीसगढ़ी के विकास में विद्याभूषण मिश्र, मुकुन्द कौशल, हेमनाथ वर्मा विकल, मन्नीलाल कटकवार, बिसंभर यादव, माखनलाल तंबोली, रघुवर अग्रवाल पथिक, ललित मोहन श्रीवास्तव, डॉ० पालेश्वर शर्मा, श्री राम कुमार वर्मा बाबूलाल सीरिया, नंदकिशोर तिवारी, मुरली चंद्राकर, प्रभंजन शास्त्री, रामकैलाश तिवारी, एमन दास मानिकपुरी का विशेष योगदान रहा है। डॉ० हीरालाल शुक्ल, डॉ. बलदेव, डॉ. मन्नूलाल यदु, डॉ० बिहारीलाल साहू, डॉ० चितरंजन कर, डॉ० सुधीर शर्मा, डॉ० व्यासनारायण दुबे, डॉ • केशरीलाल वर्मा, डॉ निरुपमा शर्मा, मृणालिका ओझा, डॉ. विनय पाठक ने भाषा एवं शोध के क्षेत्र में जो कार्य किया है वह मील का पत्थर है।

गद्य साहित्य

छत्तीसगढ़ी का गद्य साहित्य भी निरन्तर पुष्ट हो रहा है। इसके प्रमाण में हम हीरू के कहिनी, (पं. चशीधर शर्मा), दियना के अंजोर (शिवशंकर शुक्ला), चंदा अमरित बगराईस (लखनलाल गुप्त), कुल के मरजाद (केयूर भूषण), छेरछेरा (कृष्णकुमार शर्मा), प्रस्थान (परदेशीराम वर्मा) को प्रस्तुत कर सकते हैं जो उपन्यास कृतियाँ हैं।

खूबचंद बघेल, टिकेन्द्र टिकरिहा, रामगोपाल कश्यप, नरेन्द्रदेव वर्मा, विश्वेन्द्र ठाकुर सुकलाल पांडेय, कपिलनाथ कश्यप, नंदकिशोर तिवारी के नाटक, शायमलाल चतुर्वेदी, नारायणलाल परमार, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा, श्री राम कुमार वर्मा, परदेशीराम वर्मा, डॉ० बिहारी लाल साहू की कहानियों, जी. एस. रामपल्लीवार, परमानंद वर्मा, जयप्रकाश मानस, सुशील यदु एवं राजेन्द्र सोनी के गद्य व्यंग्यों को भी इसी श्रृंखला में रखा जा सकता है।

जयप्रकाश मानस द्वारा लिखित कलादास के कलाकारी को प्रसिद्ध विद्वान स्व. हरि ठाकुर ने छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रथम व्यंग्य संग्रह माना है। स्व. रवीन्द्र कंचन की छत्तीसगढ़ी रचनाएं देश की विभिन्न पत्रिकाओं में साग्रह छापी जाती रही हैं। यह • छत्तीसगढ़ी की संप्रेषणीयता एवं प्रभाव का ही प्रतीक है।

समरथ गंवइहा, रामलाल निषाद, जीवन यदु, गौरव रेणु नाविक, डॉ० पी. सी. लाल यादव, नारायण बरेठ, राम प्रसाद कोसरिया, हफीज कुरैशी, ठाकुर जीवन सिंह, शिवकुमार यदु, एमन दास मानिकपुरी, चेतन भारती, पंचराम सोनी, शत्रुहनसिंह राजपूत, मिथलेश चौहान, रमेश विश्वहार, परमेश्वर वैष्णव, देवधर महत, डॉ० सीताराम साहू, डुमनलाल ध्रुव, पुनुराम साहू, भरतलाल नायक राजेश तिवारी, रुपेश तिवारी, तीरथराम गढ़ेवाल, राजेश चौहान आदि छत्तीसगढ़ी के समर्थ रचनाकार हैं।

साहित्य

श्री प्यारेलाल गुप्त अपनी पुस्तक ” प्राचीन छत्तीसगढ़” में बड़े ही रोचकता से लिखते है – ” छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है” (पृ21 प्रकाशक रविशंकर विश्वविद्यालय, 1973)। ” छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।”

डॉ० भोलानाथ तिबारी, अपनी पुस्तक ” हिन्दी भाषा” में लिखते है – ” छत्तीसगढ़ी भाषा भाषियों की संख्या अवधी की अपेक्षा कहीं अधिक है और इस दृ से यह बोली के स्तर के ऊपर उठकर भाषा का स्वरुप प्राप्त करती है।”

भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते हैं। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परन्तु हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे।

इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।

अनेक साहित्यको ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है.

(१) गाथा युग (सन् 1000 से 1500 ई. तक)

(२) भक्ति युग मध्य काल (सन् 1500 से 1900 ई. तक) • (३) आधुनिक युग (सन् 1900 से आज तक)

ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि – ” साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।” श्री प्यारेलाल गुप्त जी ने बड़े सुन्दर अन्दाज़ से आगे कहते है – ” तथापि विशिष्ट युग की प्रवृत्तियाँ साहित्य के वक्ष पर अपने चरण-चिह्न भी छोड़ती है: प्रवृत्यानुरुप नामकरण को देखकर यह नहीं सोचना चाहिए कि किसी युग में किसी विशिष्ट प्रवृत्तियों से युक्त साहित्य की रचना ही की जाती थी। तथा अन्य प्रकार की रचनाओं की उस युग में एकान्त अभाव था। “

यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है।

एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।

छत्तीसगढ़ में भाषा साहित्य

साहित्य परम्परा को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा ने निम्न भागों में विभाजित किया

गाथा युग 1000 से 1500 ई. तक

भक्ति युग 1500 से 1900 ई. तक •आधुनिक युग – 1900 से अब तक

गाथा युग

• इतिहास की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी का गाथा युग स्वर्ण युग कहा जाता है।

• रामायण, महाभारत में छत्तीसगढ़ का विषेष स्थान है।

• बौद्ध दार्षनिक नागार्जुन ने आरम्भ सूत्र यही खोजे थे। – 875 ई. चेदिराज कोकल्ल के पुत्र कलिंगंगराज ने षुरूआत किया

• कलिंग राज के पुत्र रत्नेष ने ही रतनपुर की स्थापना किया।

• 1000 ई. से 1500 ई. तक छत्तीसगढ़ के अनेकानेक गाथाओं की रचना हुई जिसने प्रेम और बीरता व

• गाथाओं पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से होता था।

• गाथाओं का विवेचन प्रेम प्रधान, पौराणिक और धार्मिक रूप में किया जाता है।

भक्ति युग

रतनपुर के राजा वाहरेन्द्र के काल में 1536 ई. से मुस्लिमों के आक्रमण से माना जाता है। भक्तियुग के मुख्यतः तीन धारा में विभक्त है

गाथा परम्परा से विकसित गाथाओं की है।

धार्मिक एवं सामाजिक गीतो की है।

रचनाओं से जिसमें अनेकानेक भावनाएं व्यक्त किया। कल्याण साय की प्रमुख गाथा फुलकुंवर, देवीगाथा

गोपल्ला गति, रायसिंध के पवारा, ढोलामारू, और नगेसर कइना प्रमुख लघु गाथए है।

लोखिक चंदा, सरबन गीत, बोधरू गीत

आधुनिक युग

छत्तीसगढ़ का आधुनिक युग साहित्य के विभिन्न क्रम गद्य, पद्य का विकास हुआ। छत्तीसगढ़

साहित्य का विकास पण्डित सुन्दर लाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी काव्य को स्थापित किया एवं लघुखण्ड की सृजन कर प्रवन्ध काव्य लिखने की परम्परा को विकसित किया। पण्डित सुन्दरलाल शर्मा की “दानलीला” ने हिन्दी भाषा-भाषियों एवं साहित्यकारों समीक्ष के मध्य अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त किया। प. लोचन प्रसाद पाण्डेय की छत्तीसगढ़ी गद्य लेखन के संस्थापक माने जाते है। पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय की 1918 में “छत्तीसगढ़ी कविता” को प्रकाषित हुआ। पं. पद्मश्री प. मुकुटधर पाण्डेय 1918 में काव्यसंग्रह “झरना” छायावादी कविताओं का प्रथम संग्रह था विमल कुमार पाठक ने “गवई के गीत’ का विषेष योगदान दिया है। श्री हरि ठाकुर “छत्तीसगढ़ गीत अउ कविता” तथा “जय छत्तीसगढ़ी” काव्य संग्रह है। नारायण लालपरमार छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषा दोनों शाषाओं में लिखा है। छत्तीसगढ़ी में श्रृंगारिक गीतों की रचना के साथ युगबोध सुगठित नवीन कविताओं का सृजन किया। श्री रघुवीर अग्रवाल पथिक” के काव्य का प्रमुख विषय प्रकृति चित्रण एवं प्रेम है “जले खत से दीप” हिन्दी छत्तीसगढ़ काव्य संकलन है। श्री विद्याभूषण मिश्र कवि होने के साथ गीतकार भी है। “छत्तीसगढ़ गीतमाला” सुघ्घरगीत” में सान्ध्य वर्णन किया है।

• टिकेन्द्र टिकरिहा वस्तुतः सामाजिक अत्थान को वाणी देने वाले कवि है जो कर्म और साधना के रूप में छत्तीसगढ़ साहित्य को समृद्ध किये जो लगभग 100 नाटक प्रकासित हो चुका है। जिसमें मुख्यतः “साहूकार ले छुटकारा” गवइहा सौत के डर, नवा बिहान, देवार डेरा है।

Leave a Comment