TANDULA DAM 1912 में सुखा और तांदुला नदी पर बना तांदुला (आदमबाद) बांध।
TANDULA DAM तांदुला नदी और सुखा नाला के संगम पर बालोद जिले में स्थित प्रदेश का प्रथम नदी परियोजना है | तांदुला परियोजना का निर्माण ब्रिटिश अभियंता एडम स्मिथ के मार्ग दर्शन में वर्ष 1910 से वर्ष 1921 के बीच पूरा हुआ | यह छत्तीसगढ़ का तीसरा सबसे बड़ा बांध ( जलाशय ) है | यह तांदुला नदी पर बनाया गया है | बांध 827.2 वर्ग किलोमीटर (319.4 वर्ग मील) के जलग्रहण क्षेत्र से पानी का भंडारण करता है। जलाशय की सकल भंडारण क्षमता 302.31 मिलियन क्यूबिक मीटर है और उच्चतम बाढ़ का स्तर 333.415 मीटर (1,093.88 फीट) है। इसका डिजाइन एरिया 25397 हेक्टेयर है। यह बांध दुर्ग और भिलाई नगर निगम को पेयजल प्रदान करता है और भिलाई इस्पात संयंत्र की औद्योगिक आवश्यकता को पूरा करता है। तांदुला नदी शिवनाथ नदी में मिलती है।
ताडुला जलाशय, जो छत्तीसगढ़ का तीसरा सबसे बड़ा बांध है, ने इस क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देने में मदद की थी। ब्रिटेनियों ने कभी नहीं सोचा था कि वे जिस बांध का निर्माण कर रहे हैं, वह इस क्षेत्र में एशियाई के सबसे बड़े इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिए मील का पत्थर होगा। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, “ताडुला (जलाशय) इस क्षेत्र में भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) स्थापित करने का एक कारण था।” स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (SAIL) की प्रमुख इकाई माने जाने वाले BSP के लिए निर्माण कार्य 1955 में भिलाई में शुरू हुआ।
अंग्रेजों ने लगभग 100 साल पहले इस बात की परिकल्पना की थी कि जिस बांध का निर्माण वे कर रहे हैं, वह छत्तीसगढ़ में विकास के एक नए चरण का प्रवाह करेगा। और सचमुच, यह सच हो गया।
ताडुला जलाशय बालोद के नींद शहर के पास एक सदी पूरा करता है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह अपनी यात्रा के एक शानदार अतीत को पीछे छोड़ देता है जिसने वास्तव में छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय मानचित्र में एक आला दर्जा बनाने और क्षेत्र में विकास के एक नए चरण को गति देने में मदद की।
एस क्षेत्र में निर्मित पहला बांध है जिसे बहुतायत धान के उत्पादन के लिए देश के चावल के कटोरे के रूप में भी जाना जाता है। बांध के निर्माण के समय लगभग 54,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुनिश्चित की गई थी। तांदुला बांध से निकलने वाली मुख्य नहर की लंबाई लगभग 110 किमी है, जबकि इसके वितरण और शाखा नहरों की कुल लंबाई 880 किमी है।
ताडुला जलाशय बालोद के नींद शहर के पास एक सदी पूरा करता है। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह अपनी यात्रा के एक शानदार अतीत को पीछे छोड़ देता है जिसने वास्तव में छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय मानचित्र में एक आलग दर्जा दिलाने और क्षेत्र में विकास के एक नए चरण को किक गति देने में मदद की। छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख फसल धान है, जिसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। Chhattisgarh dam project राज्य मे मार्च 2013 तक 8 वृहद, 33 मध्यम एवं 2390 परियोजनाएँ पूर्ण हो चुकी है। इन परियोजनाओं के अलावा, 3 वृहद, 6 माध्यम और 430 लघु सिंचाई परियोजना निर्माणाधीन है। 2000-2001 मे छत्तीसगढ़ की कुल सिंचाई13.40 लाख हैक्टेयर जो 23.15% थी। 2013 तक 18.78 लाख हैक्टेयर हो चुका है। सिंचित क्षेत्र का 60% भाग नहरों से किया जाता है। सुनियोजित तरीके से जल संसाधनो का विकास करने के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा “जल संसाधन विकास नीति 2012 बनाई गई।
बालोद जिले के तहशील गुंडर्देही से जलाशय की दुरी लगभग १५ किलोमीटर है| बालोद कलेक्ट्रेट से लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित है। यह पर्यटक स्थल अत्यधिक आकर्षक एवं मनमोहक है जिसकी सुन्दरता देखने को बनती है |यह विडियो में सुन्दरता दिखाई गयी है| यह विडियो अवश्य देखे |
छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख फसल धान है, जिसके लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। Chhattisgarh dam project राज्य मे मार्च 2013 तक 8 वृहद, 33 मध्यम एवं 2390 परियोजनाएँ पूर्ण हो चुकी है। इन परियोजनाओं के अलावा, 3 वृहद, 6 माध्यम और 430 लघु सिंचाई परियोजना निर्माणाधीन है। 2000-2001 मे छत्तीसगढ़ की कुल सिंचाई13.40 लाख हैक्टेयर जो 23.15% थी। 2013 तक 18.78 लाख हैक्टेयर हो चुका है। सिंचित क्षेत्र का 60% भाग नहरों से किया जाता है। सुनियोजित तरीके से जल संसाधनो का विकास करने के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा “जल संसाधन विकास नीति 2012 बनाई गई।
कैसे पहुँचें :
हवाई मार्ग से
रायपुर सभी पर्यटक स्थलों से निकटतम हवाई अड्डा है और हवाई अड्डे से दूरी लगभग 125 किलोमीटर है।
रेल द्वारा
बालोद शहर का दिल है, यह बालोद रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, निकटतम रेलवे स्टेशन बालोद रेलवे स्टेशन है जो लगभग 5 किमी दूर है।
सड़क मार्ग से
बालोद धमतरी से 44 किलोमीटर, दुर्ग से 58 किलोमीटर, राजनांदगांव से 60 किलोमीटर, कांकेर से 100 किलोमीटर और रायपुर से 125 किलोमीटर दूर है।
मुख्य खबरे –
जिले की जीवनदायिनी मानी जाने वाली तांदुला डैम जिसका तीन वर्ष पहले शताब्दी वर्ष भी मनाया गया लेकिन जिले के इस प्रमुख धरोहर की लगातार अनदेखी हो रही है। जिसके चलते इस डेम का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। वहीं जिम्मेदार हैं कि इस ओर जरा भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। शासन द्वारा डैम के संरक्षण के लिए सिर्फ योजनाएं बनाई जा रही है लेकिन उनका हकीकत में पालन हो रहा है या नहीं इसका अंदाजा यहां की बदहाल स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। हकीकत यह है कि अब तांदुला डेम की बदहाली से यहां पर विरानी का आलम होने लगा है। लोग यहां घूमने फिरने जाने से कतराने लगे हैं। इसकी वजह भी कई हैं। कुछ तो शासन प्रशासन की उपेक्षा है तो कुछ हद तक यहां का बदलता माहौल है। जब से इस इलाके में शराब दुकान खुली है तबसे संभ्रांत परिवार के लोगों का इस इलाके में घूमने जाना भी लगभग बंद हो गया है। सुबह मुश्किल से 40 से 50 लोग चले जाए तो बड़ी बात है । वरना पहले सुबह तो फिर शाम को भी यहां मार्निंग और इवनिंग वॉक करने वालों की भीड़ लगी होती थी पर्यटकों का नजारा भी यहां दिखता था लेकिन अब वीरानी नजर आती है।
शराबियों की हरकतों से परेशान हैं लोग
तांदुला डैम के ही ठीक नीचे शराब दुकान संचालित है जिसके कारण यहां शराबियों का जमघट लगा रहता है तो लोग दुकान से शराब खरीदकर डैम किनारे जाकर भी पीते दिखाई देते हैं। ऐसे में लोग भी परेशान होते हैं लोग परिवार सहित यहां घूमने जाने से भी कतराते हैं। संभ्रांत परिवारों को कहना है कि ऐसे माहौल में कब कहां कैसे घटना हो जाए कोई ठिकाना नहीं रहता है। कई बार शरारती तत्वों के युवा डैम किनारे बैठ कर आने जाने वाली लड़कियों से छिटाकशी भी करते रहते हैं। जिसे देखते हुए अब पर्यटन क्षेत्र का यह इलाका पूरी तरह से असुरक्षित होता जा रहा है।
सुरक्षा को लेकर नहीं है कोई इंतजाम
जिले का यह प्रमुख प्राकृतिक व पर्यटन स्थल है लेकिन इसके बावजूद यहां सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है न पुलिस का पहरा होता है न अन्य किसी संस्थान के सुरक्षा कर्मियों का। जिसके वजह से यहां लोग सुनसान इलाका देखकर जाने से भी कतराते हैं । पहले तो चहल पहल होती भी थी लेकिन जब से इस इलाके में शराब दुकान शिफ्ट हुआ है तब से चहल पहल भी खत्म हो गई है। वरना पहले लोग दोपहरी में भी यहां घूमने निकल जाते थे उन्हें किसी बात का डर नहीं होता था और वे प्राकृतिक नजारा देख कर आराम से घर लौटते थे लेकिन अब लोगों के मन में यह डर बना रहता है कि कहीं उस इलाके में जाएंगे तो उनके साथ कोई अनहोनी न हो जाए।
जिनका है बचपन से जुड़ाव वे कह रहे काश यह हाल न होता
तांदुला डैम से शहरवासियों का काफी पुराना नाता है। कई लोगों का बचपन यहां से जुड़ा हुआ है जो यही तैरना सीखे हैं जो यहां के बदहाली देख कर आज काफी मायूस होते हैं।
लोग यह कहते नहीं थक रहे हैं कि काश इस डैम का यह हाल ना होता या यह दिन हमें आखिर क्यों देखने पड़े हैं। शासन प्रशासन सिर्फ तांदुला डेम के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह मना कर बैठ गई है।
इस शताब्दी समारोह के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च हो गए लेकिन उन पैसों से तांदुला डेम का संरक्षण नहीं किया जा रहा है जो कि कई सवाल खड़े करता है। वहीं जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर भी संदेह प्रतीत होता है कि आखिर इस धरोहर को सहेजने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है। क्यों विभाग की उपेक्षा डैम को इस बेहाली के कगार पर लाकर खड़ी कर दी है शहर के सदर बाजार निवासी संजय दुबे का कहना है कि पहले वे परिवार सहित यहां घूमने के लिए जाते थे लेकिन अब यहां की दुर्दशा देखकर उन्हें आंसू आ जाते हैं कि पहले तो यह हालत नहीं थी।
अब आखिर जिम्मेदार इसके हालत को सुधारते क्यों नहीं है। उन्होंने शासन प्रशासन से भी मांग की है कि इस धरोहर को सहेजने में ध्यान दें वरना यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं कि तांदुला डैम जिले के इतिहास में किस्सा कहानी बनकर रह जाए।